को-वर्किंग स्पेस पर प्रभावी असर हो सकता है कोरोना संकट का।
COVID-19 की वजह से अभी घर से काम करने वाले कई कर्मचारियों ने संकेत दिये हैं कि वे कोरोना वायरस महामारी के कारण उत्पन्न स्थिति के सामान्य होने के बाद भी घर से ही काम करते रहेंगे. ऐसे में को-वर्किंग स्पेस को अब अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा.
कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) के कारण लोगों के बाहर निकलने में तेज गिरावट हुई है इससे सभी तरह के बिज़नेस प्रभावित हो रहे है, खास करके आफिस स्पेस उपलध करने वाले को-वर्किंग उद्योग (Co-working Industry) का मानना है कि यह असर अस्थायी हो सकता है और कुछ कारकों के अनुकूल होने के कारण इस क्षेत्र में फिर से मांग बढ़ सकती है. हालांकि हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज करने वाले तथा आधुनिक कार्यस्थलों के लिये उत्प्रेरक के तौर पर देखे जाने वाले इस क्षेत्र के लिये चुनौतियां बनी हुई हैं, क्योंकि बड़े कॉरपोरेट अभी पाबंदियों को लेकर विस्तार को लेकर आशावान नहीं हैं. अभी घर से काम करने वाले कई कर्मचारियों ने संकेत दिये हैं कि वे कोरोना वायरस महामारी के कारण उत्पन्न स्थिति के सामान्य होने के बाद भी घर से ही काम करते रहेंगे. ऐसे में को-वर्किंग स्पेस को अब अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा.
Oplus Cowork, (Coworking Space in Patna) के संस्थापक प्रीतेश आनद ने कहा कि कोरोना वायरस से संबंधित चिंताओं ने को-वर्किंग क्षेत्रों में काम करने वालो की आमदनी रुक सी गई है, यह सेक्टर पिछले कुछ वर्षों से तेज गति से बढ़ रहा था. उन्होंने कहा कि यह असर अस्थायी हो सकता है और तभी तक रह सकता है, जब तक सावधानियां बरतने की जरूरत रहेगी. उनके अनुसार, कोई भी व्यवसाय अब अपने कर्मचारियों को पहले से कहीं अधिक लचीलापन प्रदान करने के लिये अपनी कार्य व्यवस्था पर पुनर्विचार करेगा. इससे को-वर्किंग क्षेत्र की मांग एक बार फिर से बढ़ेगी. उनका कहना है कि अब बड़े कंपनिया भी अपने फिक्स्ड एक्सपेंसेस को कम करने के लिए अपना आफिस को-वर्किंग में अपने आफिस को रख सकते है।
छोटे शहरों जैसे पटना, इंदौर, लखनऊ, भोपाल, जैसे शहरों में को-वर्किंग की मांग बढ़ सकती है।
को-वर्किंग स्पेस से खर्च का बोझ 20% कम
Cowrok के चेयरमैन अजीत कुमार के अनुसार, शीर्ष शहरों में पारंपरिक कार्य स्थलों की तुलना में को-वर्किंग स्पेस से खर्च का बोझ 20 प्रतिशत कम होता है और सारी सुविधाएं भी मिल जाता है। पुणे जैसे शहरों में यह अंतर 33 प्रतिशत तक है. इस कारण स्टार्टअप और नये उद्यमों में को-वर्किंग स्पेस के प्रति विशेष झुकाव होता है. और आने वाले समय मे इसके प्रति रुझान ओर बढ़ सकता है।
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