निवेश का नया ट्रेंड बनता जा रहा है को-वर्किंग स्पेस और को-लिविंग- कोविड-19 का असर
कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) एक संक्रामक बीमारी है जो हाल ही में पता चले एक नए वायरस की वजह से होती है.
कोविड-19 की चपेट में आए ज़्यादातर लोगों को हल्के से लेकर मध्यम लक्षण अनुभव होंगे और वे बिना किसी खास इलाज के बीमारी से उबर जाते हैं.
महामारी का रूप ले चुके कोरोना वायरस, अर्थव्वस्था पर बहुत गहरा असर छोड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया भर में कोरोना की महामारी 2.5 करोड़ लोगों का रोजगार छीन लेगी। यह पहले से जारी वैश्विक आर्थिक संकट में कोढ़ में खाज की तरह साबित होगी। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 3.6 लाख करोड़ डॉलर का झटका लगेगा। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि इससे आर्थिक और श्रम संकट गहराएगा। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी एक अध्ययन में कहा है कि वैश्विक स्तर पर एक समन्वित नीति बनती है तो नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। चीन में जनवरी-फरवरी माह में 50 लाख लोगों ने कोरोना के आर्थिक दुष्प्रभाव के चलते नौकरी गंवा दी।
मौजूदा समय में निवेशक इस वजह से परेशान हैं कि कहां निवेश करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सके. रियल एस्टेट सेक्टर से भी निवेशकों ने दूरी बनाई हुई है. निवेश करने के लिए पिछले कई सालों से नया ट्रेंड बना है और वो है को-वर्किंग स्पेस और को-लिविंग. कॉ़स्ट कम करने के लिए काफी बड़े प्लेयर्स को-वर्किंग का सहारा ले रहे हैं, इससे यह नया उबरता मार्केट बन रहा है.
को-वर्किंग स्पेस और को-लिविंग में निवेश ज्यदा लाभकारी|
बढ़ती लागत की वजह से कंपनियां काफी परेशान हैं और इसी को कम करने के लिए को-वर्किंग का ट्रेंड तेज़ी से बढ़ रहा है. पहली तिमाही के आंकड़ों की तरफ देखा जाए तो को-वर्किंग की मार्केट 25% बढ़ा है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सेक्टर में निवेश कितनी तेजी से बढ़ रहा है.
इस सर्विस की बात करें तो किसी भी प्लेयर को शांत वातावरण में बैठकर काम करने की सुविधा दी जाती है और साथ में बिजली कनेक्शन, वाइ-फाइ और पेंटरी की सेवा उपलब्घ है. महज 10,000-15,000 रुपये देकर आप को-वर्किंग स्पेस बुक कर सकते हैं. निवेश की बात करें तो फिलहाल Oplus Cowork, Smartworks, OYO, The Hive, Spring Board इस मार्केट में काफी एक्टिव हो चुके हैं.
दिल्ली-NCR में बढ़ रही है मांग
नोएडा की सबसे बड़ी कंपनी स्मार्टवक के को-फाउंडर हर्ष बिनानी का कहना है कि पिछले 4 सालों से को-वर्किंग स्पेस का ट्रेंड काफी तेजी से बढ़ा है. खासकर दिल्ली-NCR में इसकी डिमांड काफी तेजी से बढ़ी है. देश में 6 लाख मिलियन स्कॉयर फिट स्पेस सिर्फ भारत में ही उपलब्ध है, जिसमें 20 हजार मिलियन स्कॉयर फिट को-वर्किंग में ही उपलब्ध है.
स्मार्टवर्क्स के को-फाउंडर हर्ष बियानी कहते हैं कि हमें बहुत कॉन्फिडेंस है कि अगले कुछ सालों में ओवरऑल रीयल एस्टेट ग्रोथ में यह कारोबार काफी अहम स्थान हासिल करेगा. एक इंडस्ट्री के रूप में को-वर्किंग लगातार दहाई अंकों में आगे बढ़ रहा है. अगले कुछ साल में यह कारोबार 100 मिलियन स्क्वायर फुट स्पेस तक आसानी से पहुंच जाएगा.
दिल्ली-NCR के साथ साथ टियेर 2 और टियेर 3 शहरो में भी बढ़ रही है मांग
Oplus Cowork के फाउंडर प्रीतेश आनंद बताते है, "जैसा की आप जानते है की Oplus Cowork पटना में कोवोर्किंग स्पेस उपलब्ध करता है, हमारे यहाँ अचानक मई और जून के महीने इन्क्वारी बड गई है, बड़ी बड़ी कम्पनिया भी अपने बड़े ओफ्फिसस को छोड़ कर कोवोर्किंग में अपना ऑफिस दुंद रही है. " \
को-वर्किंग की सबसे बड़ी खासियत ये है कि कम लागत में आपको हर तरह की सुविधा मिल रही है. कम पैसे में आप अपना बिजनेस को खड़ाकर सकते हैं. ये मार्केट इसलिए भी काफी तेजी से बढ़ रहा है. क्योंकि निवेशकों को निवेश करने के लिए सही विकल्प नहीं मिल रहा है, क्योंकि ज्यादातर सेक्टर मंदी से जूझ रहे हैं. ऐसे में को-वर्किंग स्पेस निवेश के लिहाज से अच्छा मॉडल साबित हो रहा है. आने वाले समय में को-वर्किंग के अलावा को-लिविंग की मांग भी काफी तेजी से बढ़ रही है. अगले 1 साल तक को-लिविंग में भी जाने की योजना है.
को-लिविंग का भी बढ़ रहा है ट्रेंड
निवेश के अवसर को-वर्किंग तक ही सीमित नहीं है. को-वर्किंग के साथ को-लिविंग का ट्रेंड भी तेजी से बढ़ रहा है. हाई-स्टडी के लिए लाखों स्टूडेंट्स बाहर से आते हैं और दिक्कत होती है रहने और खाने-पीने की. ऐसे में कंपनियां को-लिविंग के जरिए स्टूडेंट्स को रहने और खाने-पीने की सुविधा दे रही हैं और वो भी महज 8,000 रुपये में.
यानी महज 8000 रुपये में खाना पीना, AC कमरे, गेमिंग रूम, जैसी सहूलियत आसानी से मिल रही है. काफी कम्पनियां जैसे ऑक्सफोर्ड कैप्स एप के जरिए स्टूडेंट का पीजी में आने जाने का समय तक रिकॉर्ड रखती है. ये रिकॉर्ड पेरेंट्स के साथ शेयर किया जाता है.
ऑक्सफोर्ड कैप्स की प्रियंका गेरा ने बताया कि स्टूडेंट लिविंग का मार्केट करीब 1 लाख करोड़ रुपये से भी ऊपर है और करीब 3.5 करोड़ स्टूडेंट हैं. ऐसे में फिलहाल मार्केट में सिर्फ 8-10 प्लेयर्स हैं जो स्टूडेंट लिविंग की सर्विस दे रहे हैं. टियर-2 शहरों में 50% की डिमांड है. सबसे ज्यादा डिमांड इंदौर, जयपुर और देहरादून से निकल रही है.
दूसरे शहरों से स्टूडेंट्स का पलायन इस मार्केट को काफी तेजी से बढ़ रहा है. ये बात तो साफ है कि जिस तरह से अर्थव्यवस्था पर मंदी के बादल छाए हुए हैं, निवेश के लिए नए ट्रेंड भी काफी तेज़ी से उबर रहे हैं. संभावना ये है कि आने वाले समय में ये ट्रेंड टियर2 और टियर-3 जैसे शहरों में तेजी से बढ़ेगा और इनकम के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे.
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